Lyrics Keertan


श्री गणेशजी की आरती 

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ x2

एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी

माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी। x2

(माथे पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी)

पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा

(हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा)

लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥ x2

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अँधे को आँख देत कोढ़िन को काया

बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया। x2

‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ x2

(दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी )

(कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी॥)

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय शिव ओंकारा

जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी ।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा ।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा ।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

जय शिवशंकर जय गंगाधर करूणाकर करतार हरे।

जय शिवशंकर जय गंगाधर करूणाकर करतार हरे।
जय कैलाशी जय अविनाशी सुखराशी सुखसार हरे।
जय शशिशेखर जय डमरूधर जय जय प्रेमागार हरे।
जय त्रिपुरारी जय मदहारी नित्य अनन्त अपार हरे।
निर्गुण जय जय सगुण अनामय निराकार साकार हरे।
पारवती पति हरहर शम्भो पाहिपाहि दातार हरे।।

जय रामेश्वर जय नागेश्वर वैद्यनाथ केदार हरे।
मल्लिकार्जुन सोमनाथ जय महाकार ओंकार हरे।
जय त्रयम्बकेश्वर जय भुवनेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे।
काशीपति श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अधहार हरे।
नीलकंठ जय भूतनाथ जय मृतुंजय अविकार हरे।
पारवती पति हरहर शम्भो पाहिपाहि दातार हरे।।

भोलानाथ कृपालु दयामय अवढर दानी शिवयोगी।
निमिष मात्र में देते है नवनिधि मनमानी शिवयोगी।
सरल हृदय अति करूणासागर अकथ कहानी शिवयोगी।
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर बने मसानी शिवयोगी।
स्वयं अकिंचन जन मन रंजन पर शिव परम उदार हरे।
पारवती पति हरहर शम्भो पाहिपाहि दातार हरे।।

आशुतोष इस मोहमयी निद्रा मुझे जगा देना।
विषय वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना।
रूप सुधा की एक बूद से जीवन मुक्त बना देना।
दिव्य ज्ञान भण्डार युगल चरणों की लगन लगा देना।
एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद संचार हरे।
पारवती पति हरहर शम्भो पाहिपाहि दातार हरे।।

दानी हो दो भिक्षा में अपनी अनपायनी भक्ति विभो।
शक्तिमान हो दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो।
त्यागी हो दो इस असार संसारपूर्ण वैराग्य प्रभो।
परम पिता हो दो तुम अपने चरणों में अनुराण प्रभो।
स्वामी हो निज सेवक की सुन लीजे करूण पुकार हरे।
पारवती पति हरहर शम्भो पाहिपाहि दातार हरे।।

तुम बिन व्यकुल हूँ प्राणेश्वर जाओ भगवन्त हरे।
चरण कमल की बॉह गही है उमा रमण प्रियकांत हरें।
विरह व्यथित हूँ दीन दुखी हूँ दीन दयाल अनन्त हरे।
आओ तुम मेरे हो जाओ जाओ श्रीमंत हरे।
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।
पारवती पति हरहर शम्भो पाहिपाहि दातार हरे।।

जय महेश जय जय भवेश जय आदि देव महादेव विभो।
किस मुख से हे गुणातीत प्रभुत तव अपार गुण वर्णन हो।
जय भव तारक दारक हारक पातक तारक शिव शम्भो।
दीनन दुःख हर सर्व सुखाकर प्रेम सुधाकर की जय हो।
पार लगा दो भवसागर से बनकर करूणा धार हरे।
पारवती पति हरहर शम्भो पाहिपाहि दातार हरे।।

जय मनभावन जय अतिपावन शोक नसावन शिवशम्भो।
विपति विदारण अधम अधारण सत्य सनातन शिवशम्भो।
वाहन वृहस्पति नाग विभूषण धवन भस्म तन शिवशम्भो।
मदन करन कर पाप हरन धन चरण मनन धन शिवशम्भो।
विश्वन विश्वरूप प्रलयंकर जग के मूलाधार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो पाहिपाहि दातार हरे।।

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे |
ॐ जय जगदीश हरे ||

जो ध्यावे फल पावे,
दुःखबिन से मन का,
स्वामी दुःखबिन से मन का |
सुख सम्पति घर आवे,
सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का |
ॐ जय जगदीश हरे ||

मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी |
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी |
ॐ जय जगदीश हरे ||

तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी |
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी |
ॐ जय जगदीश हरे ||

तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता |
मैं मूरख फलकामी
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता |
ॐ जय जगदीश हरे ||

तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति |
किस विधि मिलूं दयामय,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति |
ॐ जय जगदीश हरे ||

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे |
अपने हाथ उठाओ,
अपने शरण लगाओ
द्वार पड़ा तेरे |
ॐ जय जगदीश हरे ||

विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप हरो देवा |
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा |
ॐ जय जगदीश हरे ||

       जय अम्बे गौरी

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुमको निशिदिन ध्यावत, तुमको निशिदिन ध्यावत
हरि ब्रह्मा शिवरी ॐ जय अम्बे गौरीजय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुमको निशिदिन ध्यावत, तुमको निशिदिन ध्यावत
हरि ब्रह्मा शिवरी जय अम्बे गौरी

माँग सिन्दूर विराजत, टीको जगमग तो
उज्जवल से दो‌ नैना, चन्द्रवदन नीको
ॐ जय अम्बे गौरी

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै
ॐ जय अम्बे गौरी

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी
ॐ जय अम्बे गौरी

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति
ॐ जय अम्बे गौरी

शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती
ॐ जय अम्बे गौरी

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे
मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे
ॐ जय अम्बे गौरी

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी
आगम-निगम बखानी, तुम शिव पटरानी
ॐ जय अम्बे गौरी

चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरव
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरु
ॐ जय अम्बे गौरी

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता
भक्‍तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता
ॐ जय अम्बे गौरी

भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी
ॐ जय अम्बे गौरी

कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति
ॐ जय अम्बे गौरी

श्री अम्बेजी की आरती, जो को‌ई नर गावै
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै
ॐ जय अम्बे गौरी

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुमको निशिदिन ध्यावत, तुमको निशिदिन ध्यावत
हरि ब्रह्मा शिवरी जय अम्बे गौरी 

       आरती श्री रामचन्द्रजी 

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्।
नव कंज लोचन, कंज मुख कर कंज पद कंजारुणम्॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…।
कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरम्।
पट पीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचि नौमि जनक सुतावरम्॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनन्द कन्द कौशल चन्द्र दशरथ नन्द्नम्॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम जित खरदूषणम्॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…।
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल दल गंजनम्॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…।
मन जाहि राचेऊ मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो।
करुणा निधान सुजान शील सनेह जानत रावरो॥

1

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…।
एहि भांति गौरी असीस सुन सिय हित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन…।

                        श्री हनुमान चालीसा

दोहा

श्री गुरु चरण सरज राज , निज मनु मुकुर सुधारे |
बरनौ रघुबर बिमल जासु , जो धयक फल चारे ||

बुधिहिएँ तनु जानके , सुमेराव पवन -कुमार |
बल बूढी विद्या देहु मोहे , हरहु कलेस बिकार ||

चोपाई

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर |
जय कपिसे तहु लोक उजागर ||

राम दूत अतुलित बल धामा |
अनजानी पुत्र पवन सूत नामा ||

महाबीर बिक्रम बज्रगी |
कुमति निवास सुमति के संगी ||

कंचन बरन बिराज सुबेसा |
कण कुंडल कुंचित केसा ||

हात वज्र औ दहेज बिराजे |
कंधे मुज जनेऊ सजी ||

संकर सुवन केसरीनंदन |
तेज प्रताप महा जग बंधन ||

विद्यावान गुने आती चतुर |
राम काज कैबे को आतुर ||

प्रभु चरित सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मान बसिया ||

सुषम रूप धरी सियाही दिखावा |
बिकट रूप धरी लंक जरावा ||

भीम रूप धरी असुर सहरइ |
रामचंद्र के काज सवारे ||

लाये संजीवन लखन जियाये |
श्रीरघुवीर हर्षा उरे लाये ||

रघुपति किन्हें बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिये भारत सम भाई ||

सहरत बदन तुमर्हू जस गावे |
आस कही श्रीपति कान्त लगावे ||

संकदीक भ्रमधि मुनीसा |
नारद सरद सहित अहिसा ||

जम कुबेर दिगपाल जहा थी |
कवी कोविद कही सके कहा थी ||

तुम उपकार सुघुव कहिन |
राम मिलाये राज पद देंह ||

तुम्रहो मंत्र विभेक्षण मन |
लंकेश्वर भये सब जग जान ||

जुग सहेस जोजन पैर भानु |
लिन्यो ताहि मधुर फल जणू ||

प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहि |
जलधि लाधी गए अचरज नहीं ||

दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुमरे तेते ||

राम दुआरे तुम रखवारे |
हूट न आगया बिनु पसरे ||

सब सुख लहै तुम्हरे सरना |
तुम रचक कहू को डारना ||

आपण तेज सम्हारो आपे |
तेनो लोक हकतइ कापे ||

भुत पेसच निकट नहीं आवेह |
महावीर जब नाम सुनावेह ||

नसे रोग हरे सब पीरा |
जपत निरंतर हनुमत बल बीरा ||

संकट से हनुमान चुदावे |
मान कम बचन दायाँ जो लावे ||

सब पैर राम तपस्वी रजा |
तिन के काज सकल तुम सजा ||

और मनोरत जो कई लावे |
टसुये अमित जीवन फल पावे ||

चारो गुज प्रताप तुमारह |
है प्रसिद्ध जगत ujeyara ||

साधू संत के तुम रखवारे |
असुर निकंदन राम दुलारे ||

Ashat सीधी नवनिधि के डाटा |
अस वर दीं जानकी माता ||

राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दस ||

तुम्रेह भजन राम को भावे |
जनम जनम के दुःख बिस्रावे ||

अंत काल रघुबर पुर जी |
जहा जनम हरी भगत कहेई ||

और देवता चितन धरयो |
हनुमत सेये सर्व सुख करेई ||

संकट कटे मिटे सब पर |
जो सुमेरे हनुमत बलबीर ||

जय जय जय हनुमान गुसाई |
कृपा करो गुरु देव के नाइ ||

जो सैट बार पट कर कोई |
चुतेही बंधी महा सुख होई ||

जो यहे पड़े हनुमान चालीसा |
होए सीधी सा के गोरेसा ||

तुलसीदास सदा हरी चेरा |
कीजेये नाथ हृदये महा डेरा ||

दोहा

पवंत्नाये संकट हरण , मंगल मूर्ति रूप |
राम लखन सीता सहेत , हृदये बसु सुर भूप ||